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Tuesday, July 21, 2020

रत्नराज पुखराज



रत्नराज पुखराज
रामायण काल से ही श्रीलंका "सोने की लंका " नाम से जानी जाती है| चारो ओर से समुद्र व हरे भरे वनो से अच्छादित यह देश जैसे पन्ने का द्वीप है| एक गीत मे
 स्वर्ग से सुरम्य  लंका 
इसकी कीर्ती का सर्वत्र 
बजता रहता डंका....      ऐसा वर्णन हमे मिलता है| रत्नों के संदर्भ मे यह सत्य भी है |क्योंकि श्रीलंका के उदर मे अगणित रत्नभांडार छिपे हुए है| समस्त संसार के रत्न प्रेमी पुखराज की लालसा में  श्रीलंका आते रहते है| यहा रतनपुर नाम का छोटा सा शहर है |यहा हर खेत मे हमे रत्नो की खदाने देखने को मिलती है| जैसे पुखराज, नीलम, गार्नेट, स्पिनेल ऐसे तरह तरह के रत्न इन खदानो मे पर्याप्त मात्रा में देखने को मिलते है|
पुखराज की खदान याने एक प्रकार की चौकोन आकार की लकडी से जोडकर बांधी गई साधारतः छे फूट बाय छे फूट की चौडाई के  कुएं|  ऐसे कुओं मे यदी हम गये तो फिर हमे अत्यंत संकीर्ण ऐसे खोदे गये बोगदे दिखते है| उसकी मिट्टी टोपलीओंसे  बहार निकाली जाती है| कुओकें तल स्थित ये बोगदे प्राय: लंबे रहते है| पैरो के नीचे पानी ,अत्यंत सक्री जगह ऑक्सीजन की कमी और घना अंधेरा,  ऐसी परिस्थितियों में पुखराज की खोज की जाती है| इस पिली मिट्टी मे ही पुखराज हमे अपने अनगढ रूप में मिलता है| बाद में उसे तरशा जाता है|
बडे आकार मे पुखराज का मिलना दुर्लभ होता है| प्रायः अंडाकृती आकार में यह तराशा जाता है| ताकी रत्न का व्यर्थ अपव्यय ना हो |सामान्यतः अंडाकृती मे पुखराज की कटिंग की जाती है क्योंकि आयताकार ,चौकोनी आकार बनाते समय इसका अपव्यय जादा होता है| इसलिये चौकोनी व आयताकृती पुखराज महंगे रहते है| पुखराज की कीमत कैसे निर्धारित होती है?? यह एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है| उपर कहे मुताबिक पुखराज का आकार एवं वजन ये दो तत्व उसकी कीमत बढाने मे महत्त्वपूर्ण भूमिका रखते है|
 इसके अलावा रत्न की पारदर्शिता भी महत्वपूर्ण मानी जाती है |पुखराज जितना पारदर्शक उतना ही मूल्यवान काच की तरह स्वच्छ एवंम चमकीला तो अत्यंत दुर्लभ ही होता है| उसमे कोई बारीक चिन्ह रेखा या जिरंम होता है| जो उसके पेट मे रहती है |वास्तविक जिरम का विशिष्ट आकार 10गुने लेन्स के नीचे से देख करही इसकी परख होती है| फिर भी जिरम कम से कम होना एवम पीला रंग होना ये दो तत्व अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका पुखराज की किंमत तय करने मे अदा करते है| पिले रंग से पुखराजका निकट का नाता है| लेकिन हलदी की तरह पिला जर्द पुखराज मिलना दुर्लभ ही है| इसके अलावा हलकी हलकी पिली छटा  लिये व हलकी पिली झाई वाला पुखराज सहज ही उपलब्ध हो जाता है| इस पिले रंग की मांग के कारण पुखराज पर कई तरहकी ट्रीटमेंट की जाती है| थायलंड के कंचनाबुरी शहर मे ऐसी ग्लास फिलिंग एवंम थर्मल ट्रीटमेंट की गई रत्नोंका वैश्विक बाजार है|
कई देशों के बेपारी यहासे पुखराज की थोक मे खरीदी करते है| भारतीय ज्योतिषशास्त्रानुसार ऐसी प्रक्रिया किये हुए रत्न बिलकुल ही उपयोग नही करना चाहिये |यहा के पुखराज बँकॉक सफायर के नाम से पहचाने जाते है |साधारण ब्रँडी जैसा पिला तंबाखू रंग इनका होता है| गहनो मे जडने के लिये जैसे नेकलेस, पेंडंटसेट मे बँकॉक सफायर चलन मे है| श्रीलंका के नैसर्गिक पुखराज की तुलना में येअत्यंत सस्ते होते है |परंतु ज्योतिषीय दृष्टीकोन से ये पुखराज उपयोग करताओंने लेना नही चाहिये|
पुखराज यह गुरु ग्रह का रत्न है|  गुरु को पीला रंग प्रिय होता है ,इसलिये पिलेपुखराज कि मांग जादा बनी रहती है| पुखराज मे सफेद, गुलाबी, केशरी, हरा ऐसे रंग भी मिलते है| पिले
 पुखराज की किंमत अपेक्षाकृत अधिक होती है| सफेद पुखराज को शुक्र के उपरत्न के रूप मे प्रयोग किया जाता रहा है |यदी वह नीले रंग का हो तो नीलम नाम से पहचाना जाता है | कोरंडम नाम का यह रत्न खजाने का एक परिवार है| इस्मे माणिक, नीलम , पुखराज ऐसे नवग्रह पारिवारके महत्वपूर्ण रत्न है |कुछ लोगो की यह धारणा हें की पुखराज का अंग्रेजी नाम Topaz है| सही मे ऐसा नही होकर yellow sapphire ये पुखराज का अंग्रेजी नाम है| पुखराज यह मूल्यवान रत्न होने से इसके डुप्लिकेट नकली पुखराज अधिक मात्रा मे उपलब्ध है| आकर्षक पीला रंग ,पारदर्शी, स्वच्छ ,चमकदार दीखने वाले ये नकली पुखराज कम किंमत मे उपलब्ध हो जाते है| कुछ लोग तो नकली प्रमाणपत्र सहित  ये झुटे रत्न बेचते है| और अंनजान ग्राहक बिना किसी तसदीक कीए यह रत्न खरीद लेते है |केवल गॅरंटी कार्ड है यह देखकर ही रत्न असली है ये समझना उचित नही है| ऐसी भ्रांती मनसे निकाल देनी चाहिये|

नवग्रह रत्नमालिका मे उत्तम मांग रखनेवाला गुरु ग्रह का यह  रत्न अत्यंत फलदायी समझा जाता है| इसलिये अगणित लोक अपनी तर्जनी मे पुखराज को स्वर्ण मे धारण करते है| एवंम नयी उम्मिदो के साथ यशस्वी शिखर की ओर अपने कदम बढाते है|

उज्ज्वल सुधाकर सराफ (भुसावल)
Gemmologist (रत्नतज्ज्ञ)
हिंदी अनुवाद-प्रा. डॉ. जगदीशप्रसाद सुचिक
प्राचार्य, संत गाडगेबाबा हिंदी महाविद्यालय ,भुसावल

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